बोलि उठे भगवान् "सुनैं जो जहाँ जहाँ हैं;
अवसि सिखैहौँ धर्म, सिखें जो सीखन चाहैं।"
भिक्षु पंचवर्गीय ध्यान में प्रभु के आए।
वाराणसि की ओर तुरत भगवान् सिधाए।
तिन ही को उपदेश प्रथम प्रभु जाय सुनायो,
'धर्मचक्र' को कियो प्रवर्त्तन ज्ञान सिखायो।
मंगलमय 'मध्यमा प्रतिपदा' तिन्हैं बताई
'आर्य्य सत्य' गत दियो 'मार्ग अष्टांग' सुझाई।
जन्म मरण सौँ छूटि सकत हैं कैसे प्रानी,
पूरो जतन बताय बुद्ध बोले यह बानी-
"है मनुष्य की गति वाही के हाथन माहीं,
पूर्व कर्म को छाँड़ि और भावी कछु नाहीं।
नहिँ ताके अतिरिक्त नरक है कोऊ, भाई!
आपहिं नर जो लेत आपने हेतु बनाई।
स्वर्ग न ऐसो कोउ जहाँ सो जाय सकत नहिं
जो राखत मन शांत, दमन करि विषय वासनहिं।"
पाँच जनन में भयो प्रथम कौंडिन्य सुदीक्षित
'चार सत्य', 'अष्टांग मार्ग' में है कै शिक्षित।
महानाम, पुनि भद्रक, वासव और अश्वजित
धर्म मार्ग में करि प्रवेश द्वै गए शांत चित।
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