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किंतु सुख में लीन मैँ नहिँ भूलि तिनको जाति
पतित हैँ, जे दीन हैं, दुख सहत जे दिन राति।

यहै चाहौँ दया तिन पै करैँ श्री भगवान्,
भलो जो बनि परत मोसोँ करति अपनी जान।
चलति हौँ मैं धर्म पै, विश्वास यह मन आनि
होयहै जो कछु भलोई, होयहै नहिं हानि।

कहत प्रभु "सिखि सकत तोसोँ जो सिखावत आन को
कथत भारी बात सोँ तेरी अधिक जो ज्ञान को।
तू भली जो नाहि जानति, मगन जीवन में रहै;
धर्म अपनो जानि, बस तू और नहिं जानन चहै।

सहित परिजन छाँह में सुख की सदा फूलै फरै!
सत्य की खर ज्योति कोमल पात पै या ना परै।
बढ़त बीरो जाय यह बहु लोक बीच पसार कै।
अंत काहू जन्म में कढ़ि जाय यह भव पार कै।

मोहिं पूजन तू चली, मैं तोहि पूजत हौँ, अरी!
धन्य तेरो हियो निर्मल! धन्य तव गति मतिभरी!
बुद्धि लहि, अनजान में शुभ पंथ तू दरसावती;
ज्यों परेई प्रेम के वश नीड़ की दिशि धावती।