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बोले प्रभु "यह कौन पदारथ मो पै लाई?"
बोली सुनि यह बात सुजाता सीस नवाई-
"सौ गैयन को दूध प्रथम दुहवाय मँगायोँ,
लै पचास धौरी गैयन को ताहि खवायोँ;
तिनको लै मेँ दूध खवायोँ पुनि पचीस चुनि,
तिन पचीस को पय बारह को मैं दीनो पुनि;
तिन बारह को दूध दिया पुनि सब गुनआँकी
छः गैयन को बीछि, रही जो सब में बाँकी।
दुहि तिनको सो छीर आँच पै मृदु औटाई,
तज, कपूर औ केसर सोँ विधि सहित बसाई,
नए खेत सोँ बासमती चावर मँगवाई,
एक एक कन बीनि धोय यह खीर बनाई।
भक्ति भाव सोँ सॉचे, प्रभु! मैं कीनो यह सब।
करी मनौती रही होयहै मोहिँ पुत्र जब
तब या तरु तर आय चढ़ैहौँ पूजा तेरी;
नाथ दया सोँ सकल कामना पूजी मेरी।"


भुवन-उबारनहार हाथ धरि शिशु के सिर पर
बोले प्रभु "सुख बढ़त तिहारो जाय निरंतर।
परै न यह भवभार जानि या जीवन माहीँ;
सेवा तुमने करी, देव मैं कोऊ नाहीँ।