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गुनि तोको वनदेव दूर सौं करि बहु फेरे,
काँपति काँपति गई सुजाता ताके नेरे।
करति दंडवत भूमि चूमि बोली यह बानी-
"हे बन के रखवार! देव, अति शुभ-फल-दानी!
दर्शन दै ज्योँ दया करी दासी पै भारी,
पत्र पुष्प क़रि ग्रहण करौ प्रभु! मोहिं सुखारी।
तव निमित्त बहु जतनन साँ यह खीर बनाई;
दधि कपूर सम श्वेत आज प्रभु सम्मुख लाई।"
कनक कटोरे माहिं खीर प्रभु ढिग सरकाई
चंदन गंध चढ़ाय, फूलमाला पहिराई।
खान लगे भगवान बचन मुख पै नहिँ लाए;
खड़ी सुजाता दूर भक्ति सोँ सीस नवाए।
ऐसो गुण कछु रह्यो खीर में, खातहि वाके
गई शक्ति प्रभु की बहुरी, वे सुख सोँ छाके।
पूरो बल तन माहिं गयो पुनि ऐसो आई
व्रत औ तप के दिवस स्वप्न से परे जनाई।
तन मैं जब बल परसो चित्त हू लाग्यो फरकन,
बढ़ि बहु विषयन ओर लग्यो छानन हित सरकन;
जैसे पंछी थको मरुस्थल की रज छानत
गिरत परत जल तीर आय सहसा बल आनत।
ज्योँ ज्योँ प्रभु-मुखकांति मनोहर बढ़ति जाति अति
त्योँ त्योँ औरहु खड़ी सुजाता है आराधति।