पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/१७८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(११४)

ठानि यासोँ बैर काहे सॉप लैहै प्रान?
खेल में क्यों, याहि डसिहै, जानि बाल अजान?
कह्यो कोउ कोउ "बसत गिरि पै सिद्ध एक महान;
जाय ता ढिग देखु तो करि सकैं कछु कल्यान।"

सुनत धाई पास, प्रभु! तव विकल कंपितगात;
दिव्य दर्शन पाय परस्यों पुलकि पद जलजात।
बिलखि शिशु तहँ डारि, दीनो तासु मुखपट टारि,
'करिय कछु उपचार' प्रभु! योँ विनय कीनी हारि।

करी मोपै दया, भगवन्! नाहि टार्यो मोहिं
परसि शिशु भरि नीर नयनन कह्यो मो तन जोहि

"हे भगिनि! जानत जतन जो मैं देत तोहि सुनाय,
उपचार तेरो और तेरे शिशुहु को ह्वै जाय,
पै सकै जो तू लाय जो मैं देत तोहि बताय,
है कहत जो कछु वैद्य, रोगी देत ताहि जुटाय।

माँगि घर सोँ काहु के दे लाल सरसोँ लाय;
ध्यान रखि या बात को तू जहाँ माँगन जाय
लेय वा घर सोँ न तू जहँ मरो कोऊ होय-
पिता, माता, बहिन, बालक, पुरुष अथवा जोय।