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लगी प्रभु सोँ कहन योँ कर जोरि करत प्रणाम
"तुम्हैं चीन्हति हौँ, प्रभो! तुम सोइ करुणाधाम

जो धरायो धीर मोकोँ वा कुटी में जाय
जहाँ इकली शिशु लिए मैं रही दिनन बिताय।
रह्यो फूलन बीच घूमत एक दिन सो बाल;
रह्यो ढिग नहिं कोउ; लिपट्यो आय कर सोँ व्याल।

लग्यो खेलन ताहि लै सो मारि बहु किलकार;
काढ़ि दुहरी जीभ विषधर उठ्यो दै फुफकार।
हाय! पीरो परो वाको अंग सब छन माहिं;
गयो हिलिबो डोलिबो, थन धर्यो मुख में नाहिँ।

कहन लाग्यो कोउ याको विष गयो अब छाय;
कोउ बोल्यो 'सकत याको नाहिँ कोउ बचाय।'
किंतु कैसे बनै खोवत प्राणधन निज, हाय!
झाड़ फूँक कराय, देवन थकी सकल मनाय।

किए जतन अनेक खोलै आँखि सो शिशु फेरि,
मुदित 'माय' पुकारि बोलै कछुक मो तन हेरि।
गुन्योँ मैं नहिं सर्प को है दंश अधिक कराल;
नाहिं अप्रिय काहु को है नेकु मेरो लाल।