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ताहि तिहारे हेतु खोजिहौँ अधिक सबन सोँ;
धीरज यातें धरौ छाँड़ि चिंता सब मन सोँ।
परै दुःख-जो कछु धीर धरियो गुनि यह चित
होय कदाचित् हम दोउन के दुख सोँ जगहित।
सत्य-प्रेम-प्रतिकार सकै कोऊ जेतो चहि
प्रीति निहोरे जेतो कोउ रसभोग सकै लहि
लहौ सकल तुम आलिंगन में मम, हे प्यारी!
स्वार्थभाव अति अबल प्रेम के बीच बिचारी।
चूमौ मम मुख, पान करौ ये बचन हमारे;
जानौगी तुम और न जाके जाननहारे।
सब सोँ बढ़ि के प्रीति करी तुमसोँ मैं, प्यारी!
कारण, मेरी प्रीति सकल प्राणिन पै भारी।
प्राणप्रिये हे! सुख सोँ सोओ तुम निधरक
अब हौँ बैठो मैं पास तिहारे औ निरखत सब।"


सजल नयन सोँ सोय रही सो सिसकति रोवति;
'समय गयो अब आय' स्वप्न सो पुनि यह जोवति।
उलटि कुँवर सिद्धार्थ रह्यो नभ ओर निहारी,
चमकत उज्वल चंद्र, विमल फैली उजियारी।
बीच बीच में कतहुँ रजत सी आभा धारे
मिलि कै मानो रहे यहै कहि सारे तारे-