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होय मोहिं सामर्थ्य बचावन की कछु जाको
जान देहुँ मैं या पुकारिबो विफल न ताको।
है कैसी यह बात रचत ईश्वर जग सारो
पै राखत है सदा दुःख में ताहि, निहारो!
सर्वशक्तिमत् ह्वै राखत यदि सृष्टि दुखारी
करुणामय सो नाहिँ और ना है सुखकारी।
और नाहिँ यदि सर्वशक्तिमत्, ईश्वर नाहीं।
बस, छंदक, बस! बहुत लख्यों मैं एते माहीं।"

सुनी नृपति यह बात, घोर चिता चित छाई;
दोहरी, तिहरी फाटक पै चौकी बैठाई।
बोल्यो "कोऊ जान न भीतर बाहर पावैं
स्वप्न घटन के दिन न बीति सब जौ लौँ जावैं।"