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(७) राणा सब्बे वाणिया जेसलु बड्डुउ सेठि।

(८) एहुँ जाणेवउँ जइ मणसि तो जिण आगम जोइ।

(९) एकला आइबो, एकला जाइबो हाथ पग वे झाड़ी।

(१०) झाली तुट्टी किं न मुउ किं न हुयउ छार पुंज। हिंडइ दोरी बंधीउ जिम मक्कड़ तिम मुंज।

इन पद्यों में हम ब्रजभाषा के भूतकाल और पुं० कर्ता और कर्मकारक के रूपों के बीज पाते हैं जैसे संदेसडओ (आधुनिक संदेसड़ो);बडुउ(= बड्डो= बड़ो);दिन्हउ,लिन्हउ(= दीन्हो,लीन्हो); डुब्बिउ(= डूब्यो);जाईयउ(=जायो);उड्डावियउ(= गुजराती उड़ावि- योव्रज० उड़ायो);हुयउ(= हुओ);बंधीअउ(=बँध्यो)। क्रिया के पुरुषकाल -वर्जित साधारण रूप 'जाणेबउँ' (पुराना),'आइबो', जाइबो'भी मौजूद हैं। संज्ञा के बहुवचन रूप भी हैं जो अवधी आदि पूरबी भाषाओं में बिना कारकचिह्न लग नहीं होते जैसे, 'डीहियाँ थियाँ' = बढ़ी चढ़ी स्त्रियाँ। स्त्रीलिंग विशेषणों में भी विशेष्य बहुवचन के अनुसार विशेषण का बहुवचन रूप होनाअभी थोड़े दिनों पहले था और वली आदि उर्दू के पुराने शायरों में क्या

(७) सब राणा बनिये हैं,जैसल बड़ा सेठ है।

(८) यह जानना यदि मन में है तो जिनागम देख।

(९) अकेले पाना,अकेले जाना दोनों हाथ पैर झाड़ कर।

(१०) जल कर या टूट कर क्यों न मरा,राख क्यों न हो गया? जैसे बंदर वैसे मुंज डोरी में बँधा घूमता है।