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और कुमारपाल प्रतिबोध आदि ग्रंथों में भी जो पद्य हैं उनका ढाँचा पच्छिभी हिंदी का है। नीचे कुछ उदाहरण दिए जाते हैं-

(१) अम्मणिो संदेसडलो तारय कन्ह कहिज। जग दालिदिहि डम्बिउं बलिबंधणह मुहिज।

(२) जेह आसावरि देहा दिन्हउ।सुम्थिर डाहररज्जा लिन्हउ?

(३) सउचित्त हरिमट्ठी मम्मणह बत्तीस डीहियाँ हियम्मि ते नर दड्ढ सीझे जे बीससइ थियाँ।

(४) जइ यह रावण जाइयउ दहमुह इक्कु सरीर। जणणि वियंभी चिंतवइ कवणु पियावउँ खीर।

(५) उड्डावियउ वराउ।

(६) माणुसडा दस दस दसा सुनियइ लोय पसिद्ध। मह कंतह इकज दसा अवरि ने चोरिहि लिद्ध।

(१) हमारा संदेसा तारक (तारनेवाले) कान्ह को कहना। जगत् दारिद्रय में डूबा है,बलि के बंधन को छोड़ दीजिए।

(२) जिसने आसावरि देश दिया,सुस्थिर डाहर राज्य लिया।

(३) सब चित्तों को हरने के लिये काम की बातों में दक्ष स्त्रियां पर जो विश्वास करते हैं वे नर हृदय में बहुत सीझते (संताप सहते) हैं।

(४) जब यह दस मुँह और एक शरीरवाला रावण उत्पन्न हुआ, (तत्र) माता अचंभे में आई हुई सोचती है कि किसको दूध पिलाऊँ।

(५) उड़ा दिया (गया) बेचारा।

(६) मनुष्य की दस दशाएँ लोक में प्रसिद्ध सुनी जाती हैं,(पर) 'मेरे कंत की एक ही दशा (दारिद्रय) है और जो थीं वे चोरों ने हर ली।