हुआ। उस दिन वे उसी वृक्ष के नीचे सो रहे और दूसरे दिन अपने योगसाधन की सामग्री इकट्ठी करने के लिये गाँव में गए। वहाँ उन्होंने सुजाता नामक एक स्त्री के घर भिक्षा के लिये प्रार्थना की । दैवयोग से उस दिन उसके घर खीर पकी हुई थी। सुजाता ने अश्वत्य पक्ष को लोग अषपाल कहते थे । बुद्धदेव मावःकाल जब सेनग्राम के पास पहुंचे तव उन्हें ज्ञात हुआ कि अभी सूर्योदय हुआ है, मिक्षा का काल नहीं है, अतः वे अजपाल वृक्ष के नीचे बैठ गए। सेनग्राम के एक पुरुष की, जिसका नाम महासेन था, सुजाता नाम की एक कन्या थी । उस कन्या ने प्रतिज्ञा की थी कि यदि मेरा विवाह योग्य पति से होगा और मुझे संतान लाभ होगा तो मैं अजपाल पक्ष के नीचे वासुदेव को पायस अर्पण करगी। दैवयोग से सुजाता का मनोरथ पूर्ण हुभा और वह अपने पिता के घर आई थी और उस दिन अनपाल के नीचे पायस पढ़ानेपाली थी। उसके पिता के वहां सहसों गौर थी और उसने उनमें से एक सहन गौधों का दूध लेकर दो सौ गौत्रों को, फिर उनके दूध को चालोस को और अंव को चालीस का दूध पाठ अच्छी गौत्रों को पिला उनका विशुद्ध दूध लेकर पायस बनाया था और प्रातःकाल ही अपनी दासी पूर्णा को धनपाल में सफाई करने के लिये भेजा था। पूर्ण चव अजपाल के नीचे भाई वव वहां उसने महात्मा गौवम सिद्धार्थ कुमार को बैठा हुआ पाया। पूर्णा उन्हें वहां देख अत्यंत प्रार्यान्वित हुई । उसने समझा कि भक्तवत्सल वासुदेव स्वयं पायस-भक्षण के लिये अनपाल के नीचे मा विराजे हैं। उसने यह समाचार सुजाता से जाफर कहा । सुखाता कुतूहलवश अपनी दासी पूर्णा के साथ अजपाल वृक्ष तले पहुंची और महात्मा गौवम को वृक्ष के नीचे देख उसने उन्हें यही भक्ति से पायस समर्पण किया। गौतम के पास पात्र नहीं था, अत: उन्होंने पायस का थाल सुजावा के हाथ से ले लिया । उस पावस के गौतम ने उनचास ग्रास बनार, और खाकर उसं पाल को निरचना नदी में फेंक दिया ।
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