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कालिक बौद्धों के आचार व्यवहार आदि उन सिद्धांतों के अनुकूल नहीं, पर इसके लिये वे उत्तरदाता है, शास्त्र नहीं।

संभव है कि इस ग्रंथ में कुछ त्रुटियाँ रह गई हों, पर मैंने इस ग्रंथ को निप्पन भाव से लिखने में अपनी ओर से जान बूझकर कोई कसर नहीं रक्खी है। आशा है कि पाठक त्रुटियों को क्षमा करेंगे।

सर्वे सर्व न जानति ।'

काशी, गोरखनाथ का टीला।)२० नवंबर, सन् १९१४,
जगनमोहन वर्मा