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गई। कई दिन तक दिन रात आनंद उत्सव मनाया गया। स्वयं सिद्धार्थ'कुमार को भी विवश हो उस नृत्य-गान में सम्मिलित होना पड़ा । जिस समय उस समाज में अन्य शाक्य अपनी कणेंद्रियादि । के विषय में मग्न थे, सिद्धार्थ कुमार वहाँ वैठे अवसर देख रहे थे । कि उन्हें कपिलवस्तु से प्रस्थान करने का अवकाश मिले । सच है- या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। यस्यां जागति भूतानि सा निशा पश्यते मुनौ। उस समाज में बैठे बैठे कुमार के हृदय में चार प्रकार के प्रणि- धानों का उदय हुआ। पहले यह कि संसार चार महा बंधनों में बद्ध है, इसे मुक्त करना चाहिए। दूसरे संसार घोर अविद्यांधकार से अस्त है, इसे प्रज्ञाचक्षु प्रदान करना चाहिए। तीसरे, मनुष्यों के पीछे अहंकारस्मिता इत्यादि लगे हुए हैं, उन्हें आर्यधर्म का उपदेश कर निवृत्त करना चाहिए; और चौथे संसारी जीव धर्माधर्म के वशीभूत हो इस लोक से परलोक और परलोक से इस लोक में चक्कर लगाया करते हैं । इस आवागमन के चक्र से बचाने के लिये प्रज्ञावृष्टि प्राप्त कर धर्म का पता लगाकर उन्हें उपदेश करना चाहिए। ___ आज आपाढ़ मास की पूर्णिमा है । आधी रात हो गई है। कपिल- वस्तु में कई दिन से आनंद उत्सव मनाया जा रहा है । सव लोग राग नृत्य देखते देखते थक गए हैं। उनकी इंद्रियाँ शिथिल हो गई हैं। सब लथ पथ हो गए हैं। मंडप में कोई कहीं कोई कहीं विश्राम कर रहा है । सव लोगों को शांत और क्लांत देख नर्तक-नर्तकी, गायक- गायिका आदि भी वहीं उन्मत्त की भाँति मंडप में गिर खर्राटे भरने