( २९ ) खरोष्ट्री आदि लिपियों का लिखना सिखाकर लिपिबोध कराया। फिर क्रमशः कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष् , वेदों के षडंग पढ़ाकर ऋक, यजुप्, साम और अथर्व वेद उनके ब्राह्मण और रहस्य सहित पढ़ाए। सिद्धार्थ कुमार ने चारों वेद, जिन्हें अन्य विद्यार्थी ४८ वर्ष में भी कठिनता से समाप्त करते थे, अल्पकाल ही में वड़ी योग्यता से पढ़ लिए। आचर्ण विश्वामित्र ने अपने इसयोग्य शिष्य को प्रखर बुद्धि से अति विस्मित हो उसे दर्शनशास्त्र की शिक्षा देनी परंभ की और वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदांत के अतिरिक्त, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास, पुराण, वाहस्पत्य, निगम इत्यादि विषयों को शिक्षा दी है। द्राविडलिपि, किनारिलिपि, दक्षिणलिपि. लिपि, यालिपि, अनुलो. मतिषि, धनुलिपि, दरदलिपि, सास्वलिपि, चीनलिपि, हलिपि, मध्यातरविस्तरलिपि, पुप्पलिपि, देवलिपि, नागलिपि, यक्षलिपि, गंधर्व- लिपि, किन्नरलिपि, महोरगलिपि, बमुलिपि, गरुहलिपि, भगवझलिपि, चमलिपि, वायुमरुस्लिलपि भौमदेपलिपि, अंतरिषदेयलिपि, उत्तरकुम्वीप. लिपि, अपरगौडानिलिपि, पूर्वविदेहलिपि; उत्क्षेपलिपि, निक्षेपलिपि; विपलिपि; प्रक्षेपलिपि; सागरलिपि बनलिपि; लेखप्रतिलेखलिपि अनु. द्रुतलिपि; शास्त्रावर्तसिपि; गसनायर्तलिपि; उत्तेपावर्तलिपि; निपा- वर्तलिपि, पादलिखितलिपि; द्विरुत्तरपदसपिलिपि; वावद्देशोत्तरपदधि- लिपि; प्रवाहारिणिलिपि; सर्वपल्संग्रहणीलिपि, विशानुलोमलिपि पिनि- वितलिपि पितपस्वताच घरणीय क्षणीलिपि । सौषधि निप्येदां, सर्वसारग्रहणी, सर्वभूतस्तग्रहतीं । ललित० __ * हीनयान का मत है कि भगयान युद्धदेव को रुव ज्ञान और दिया बिना पहार और सिखार आ गई थी।
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