भूमिका
महात्मा बुद्धदेव संसार के बड़े महापुरुषों में एक आदर्श महा- पुरुष थे। हिंदुओं के ग्रंथों में जिस प्रकार राम, कृष्ण आदि पर- मात्मा के अवतार कहे गए हैं, उसी प्रकार बुद्ध भी कहे गए हैं। उनके अनुयायी आज तक हिंदुस्तान, तिब्बत, चीन, वर्म्मा, जापान,स्याम, लंका, जावा आदि देशों में पाए जाते हैं । वौद्ध धर्म हिंदू-धर्म से कोई पृथक् धर्म नहीं है । जिस प्रकार एक सत्यसनातन वैदिक धर्म की श्रौत, स्मात, शैव, वैष्णव, आर्य समाज आदि,अनेक साम्प्रदायिक शाखाएँ हैं, जिनमें देश-काल के भेद से अंतर दिखाई पड़ता है, वैसे ही बौद्धधर्म भी सत्यसनातनधर्म की एक शाखा मात्र है। स्वयं भगवान् बुद्धदेव ने अपने वचनों में बीसों जगह कहा है-"एस धम्मो सनत्तनो।"
आजकल कुछ लोग महात्मा बुद्धदेव के उपदिष्ट सिद्धांतों को न जानकर यह कहा करते हैं कि महात्मा बुद्धदेव नास्तिक और वेदधर्म के विरोधी थे । सन् १९११ में गुरुकुल काँगड़ी के सरस्वती सम्मेलन में "क्या बुद्धदेव नास्तिक थे ?" इस विषय पर अपने विचार प्रकट करते हुए मैंने उन्हीं के वाक्यों से सिद्ध करके दिखाया था कि महात्मा बुद्धदेव नास्तिक नहीं थे। आज उन्हीं महात्मा का यह एक छोटा सा जीवनवृत्तांत आप के सामने उपस्थित करता हूँ।