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सम्भावना बन्धुजनश्च संगमो

न पुत्रहीनं वहवोप्यरंजयन् ॥

अनेक यज्ञादि करने पर महाराज शुद्धोदन की पैंतालिस वर्ष की अवस्था में वैशाख की पूर्णिमा के दिन उनकी पटरानी महामाया को गर्भ रहा । प्रजावर्ग यह सुनकर कि महाराज की रानी गर्भवती हैं, बहुत प्रसन्न हुए और.चारों और आनंद मनाया जाने लगा। राजमहल में इस आनंद के उपलक्ष में बड़ा उत्सव मनाया गया. जिसमें शाक्यवंश के सभी राजकुमार निमंत्रित किए गए। बधाई बजी और सब ने महाराज शुद्धोदन के भाग्य को प्रशंसा की।

जब से महामाया गर्भवती हुई, उसका मुखड़ा चाँद सा चमकने लगा। महाराज शुद्धोदन का हृदयकमल जो बहुत दिनों से कुम्ह लाया हुआ था, खिल गया। उनकी मुरझा हुई हुई आशालता पनपने लगी। सब प्रजावर्ग पुत्र के उत्पन्न होने के समय की बड़े कुतूहल से प्रतीक्षा करने लगे। धीरे धीरे पुत्र के प्रसव का काल भी आ पहुंँचा। महामाया की यह प्रबल इच्छा थी कि उनका पुत्र उनके पिता के घर उत्पन्न हो । इसलिये जव प्रसव का काल अत्यंत समीप आ गया तब उन्होंने महाप्रजावती से इस बात की सलाह कर महाराज शुद्धो-

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  • ललितविस्तर का मत है कि गर्भाधान के बोड़े समय बाद ही महा- माया ने स्वप्न देखा कि एक महात्मा जिसका वर्ण हिम रजत के समान स्वच्छ था और जिसकी प्रभा चंद्र सूर्य के समान थी, उसके उदर में प्रवेश कर गया। इस स्वप्न का फल ब्राह्मणों ने यह बतलाया था कि महामावा के गर्भ से जो लड़का उत्पन्न होगा, यह पक्रयः राजा वा वुद्ध होगा।