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लोगों ने जंगल काटकर आवाद किया था। पृथ्वी उर्वरा और निम्न थी। जगह जगह पर पहाड़ी नदियों की धार बदलने से झोल और ताल पड़ गए थे जिनमें कमल और कोई खिली रहती थीं। देश की रहनेवाली थारू, लोध आदि जंगली जातियाँ थीं जिनको वहुत पीछे क्षत्रियों ने आकर निर्वासित किया। देश की प्रधान उपज धान, कोदो, गवेधुक , सावाँ आदि थी। तालों में तीनी, तुम्या आदि जंगली धान स्वच्छन्द उपजते थे जिन्हें खाकर वानप्रस्थ तपस्वीगण अपना जीवन निर्वाह करते हुए परमात्मा का भजन करते थे। जंगलों में नाना प्रकार के फल, फूल, कंद, मूल, शाक आदि प्रत्येक ऋतु में उपजते थे और शस्यपूर्ण वसुंधरा वहाँ रहनेवाले पशु पक्षियों के लिये पुष्कल सामग्री लिए हुए सदा उपस्थित रहती थी। प्रजाओं की सम्पत्ति अन्न और गो थी और सब लोग दूध-पूत से सुखी थे।
कपिलवस्तु की राजधानी उसी नाम से प्रख्यात थी जो कपिलमुनि के आश्रम के पास वाणगङ्गा * के दाहिने किनारे पर उससे उत्तर पश्चिम की ओर बसी हुई थीं। नगर के चारों ओर गूढ़ प्राकार था जिसके किनारे पनियाँसोत खाई थी। नगर के मध्य राज-परिवार के पृथक् पृथक् महल बने हुए थे। चौड़ी
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- यह नेपाल की तराई से प्राई है और बस्ती ने ककरही के पास बूढ़ी रापती से मिली है। इसका उल्लेख शुयेनच्चांग ने किया है जिसे उसके अनुवादकों ने Arrow Stream लिखा है।