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यह पता चला कि राजकुमार शाकोट बंन में अपनी बहिनों से विवाह कर कपिल मुनि के आश्रम के पास कपिलवस्तु नामकं नगर बसां कर रहते हैं, तो उन्होंने विद्वानों की मंडली एकट्ठी कर यह प्रश्न कियां किराककुमरों काशास्त्र-विरुद्ध यह कृत्य शक्यं है वो अशक्य ? विद्वानों ने उनके इस कृत्यं को आपद्धर्म बतलाकर शक्य होने की व्यवस्था दी। इसी लिये वे लोग शाक्य * कहलाने लगे। भंवदान-कल्पलता में लिखा है कि राजा अपने पुत्रों को फिर युलाने के विषय में अपने मन में यह विचार करने लगे कि यह शक्य है वा अशक्य । दसीसे वे शाक्य कहलाए। कितने लोगों का मत है कि शाक्य शक (Scythian) थे। उनका कंचन है कि ईसा के जन्म से दर्शताब्दी पूर्व जो लोग मध्य एशिया से शांकर नेपाल की तराई और भगध शादि देशों में बसे, उन्हीं के अंवर्गत शागरा भी थे । थापं नाम पड़ने का एक और हेतुं हो सकता है । शाक 'शब्द ही शाकोट धन की प्रकृति जान पड़ता है। इसी शाकं से हिंदी भाषा का साखू शंन्द निकला है। अनुमान होता है कि साखू के जंगल के कारण ही भैपाल की तराई को पुराणों में शाकद्वीप कहा हो और यहां रहने ही से क्षत्रिय लोग शाक्य तथा प्राह्मण शाकावीपी कहलाने लगे हों। ऋग्वेद में भगंध देश के पुराने वासियों को 'मर्गद' लिखा है जिससे मगध शब्द बना है। अधिक संभव है कि येही लोग शायों में मिलने पर पीछे शाक्य, शाफद्वीपी शादि विभेदों के नाम से प्रख्यात हुए हों। शाकद्वीपी ब्राह्मणों को पुराणों में 'मर्ग'. भी कहा है। भगंदी, मग, मुग, माजी (Magi), मांग, मंगोल (Man- golian), शब्दों का सांई भी चिंत्य है। भागवत में भी शायों को इण्याकुर्यशी लिखा है- भागवत दशमस्कंधे। परमेश्वरात ब्रह्मा-नाता तस्व पुत्रो मरीचिस्तत्व काश्यपस्तस्व सूर्यस्वस्य चैवस्वतामनुः । सत्ययुगें ममुरवं राजासीत । त्रेतायुगे तस्यपुत्र इश्याकु: .., ... तस्व अंजा तस्य दशरेयः । पिष्णु रामचद्रूपेण वस्यपुत्रत्वं मासवान्...असो वाद्वापरयोः संघीय -