( २३५ ) . प्रकार उपदेश किया है जैसे उनका वर्णन हिंदुओं के धर्मशास्त्रों में मिलता है । उनका विशेष लक्ष्य शील, प्रियभाषण, अहिंसा तथा अप्रमाद पर था । सत्य और सदाचार आदि का उपदेश तो उनके वाक्यों में पद पद पर पाया जाता है। जैसे- वाहुसच्चं च सिप्पं च विनयो च सुसिक्खितो। , सुभासिता च या वाचा एतं मंगलमुत्तमं । अरति विरतिं पापा मज्जपाना च सञ्जमं । अप्पमादो च धम्मेसु एतं मंगलमुत्तमं । गारवो च निवातो च संतुट्टि च कतञ्जता। कालेन धम्मसवणं एतं मंगलमुत्तमं ॥ खन्ती च सोवचरसता, समणानं च दस्सनं । कालेन धम्मसाकच्छा एतं मंगलमुत्तमं । तपोच ब्रह्मचरिया च अरियसच्चा न दस्सनं । .:. निव्वाण सच्छिकिरिया च एतं मंगलमुत्तमं ।। . . . . बाहु सत्य, शिल्प, विनय, सुशिक्षित होना और प्रिय वचनं ये उत्तम मंगल हैं। पाप से अरिति और विरंति, मद्यपान से संयम (बचना) और धर्माचरण में अप्रमाद ये उत्तम मंगल हैं। गुरुतं और अनिवांत (अविकम्प वा धृति) संतोष, कृतज्ञता और काल आने पर धर्म का श्रवण करना, ये उत्तम मंगल हैं। क्षांति, सौव- चंख, साधुओं का दर्शन और समय पर धर्म को साक्षात् करना; ये उत्तम मंगल कार्य हैं । तप, ब्रह्मचर्या, आर्य सत्यों का दर्शन और निर्वाण का साक्षात्कार ये उत्तम मंगल हैं। . . . . .
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