( २२९ ). अमिधर्म और विनयपिटक वर्तमान अभिधर्म और विनयपिटक का मूल था जिसकी टोका वा भाग्य-रूप यह वर्तमान त्रिपिटक है। ___ उस आदिम त्रिपिटक का कई वार संस्करण हुआ। हीनयान का त्रिपिटक आदि त्रिपिटक का तृतीय संस्करण है । यह संग्रह महाराज अशोक के समय में किया गया था और उसमें भी जातक आदि के अंश अशोक से भी पीछे के बने हुए हैं। महायान का त्रिपिटक चतुर्थ धर्मसंघ का संस्करण है जो महाराज कनिष्क के समय में संघटित हुआथा,और जिसमें वौद्ध धर्म के साथ तांत्रिक अंशों का मिश्रण पाया जाता है। माध्यमिक, सौत्रांतिक, योगाचार और वैभाषिक इस महायान के दर्शन हैं जिनका विकाश महाराज अशोक के बहुत पीछे हुआ। महात्मा बुद्धदेव ने प्राचीन आर्यधर्म के अतिरिक्त, जिसका उपदेश उपनिषद् आदि ग्रंथों में मिलता है,किसी नवीन या अनोखे धर्म का उपदेश नहीं किया । उन्होंने अपने मुँह से अपने उपदेशों में स्पष्ट शब्दों में कई बार कहा है 'एपधम्मो सनचनो' अर्थात् यह सनातन धर्म है। महात्मा बुद्धदेव का उपदेश दो भागों में विभक्त किया जा सकता
- अमिमर्म में विच, घेतसिफ, ८प और निर्वाण, पर्शत् मन, उसकी .
एसियों और निर्माण का वर्णन है। +इसमें श्रापार व्यवहार का वर्णन है।
- भाषफल धौद्ध धर्म यो दो मुख्य भेद मिलते हैं-हीन यान और महा-,
बाना। पर इनके पारद निकार्यों का उल्लेख मिलता है और प्रत्येक निकाय