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राजा को अनुकूल जान कहा कि “ महाराज ! मैं अपनी यह थाती आप के पास रखती हूँ। मैं अपने माता-पिता की सम्मति लेकर आप से वरप्रदान के लिये प्रार्थना करूँगी।" थोड़े दिनों के वाद जयंती अपने माता पिता के घर गई । वहाँ अपने माता पिता और कुटुंवियों से घर का सव समाचार उसने कह सुनाया। उसके कुंटु वियों में किसी ने गाँव, किसी ने धन, किसी ने कुछ, किसी ने कुछ माँगने के लिये कहा। इसी बीच में एक बुद्धिमती स्त्री बोल उठो-“हे जयंती ! तुम जानती हो कि महाराज की क्षत्रिया पटरानी के पाँच पुत्र हैं;उनमें से किसी के होते तुम्हारे पुत्र जयंत को राज्य मिलना नितांत दुस्तर क्या, असंभव है; और यह भी असंभव है कि महाराज सदा तुम्हारे अनुकूल और वशीभूत हो रहें । इक्ष्वाकु वंशियों का यह सनातन से स्वभाव है कि उनकी वाणी कभी अन्यथा नहीं होती। अतः मेरी तो यही सम्मति है कि तुम महाराज से यह वर माँगो कि महराज!मेरी यही प्रार्थना है कि आप ऐसा प्रयत्न करें कि आप के वाद जयंत ही अयोध्यापुरी का राजा हों।" उसकी सम्मति को सभी लोगों ने पसंद किया और जयंती वहाँ से अयोध्यापुरी आई।

जयंती ने एक दिन राजा को अपने अनुकूल देख हाथ जोड़कर प्रार्थना की-“महाराज, आज मैं आप से अपनी थाती मागती हूँ। यह राजकुल सदा से सत्यभाषी विख्यात है, अतः यदि आपने मुझ पर प्रसन्न हो मुझे वरप्रदान करना स्वीकार किया है तो मेरे पुत्र जयंत को युवराज पद पर अभिषिक्त कीजिए, जिससे वह आपके