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( २२५ ) करके वह खड़ा हो गया। चिता में आग लगा दी गई और घात. की बात में महात्मा बुद्धदेव का शरीर जलकर राख का ढेर हो गया। दूसरे दिन उनकी अस्थिचयन-क्रिया की गई और हड्डियाँ चुन कर एक कुंभमें रखी गई । मल्लराज ने उनकी चिता के स्थान पर स्तूप बनाने का प्रबंध किया। इसी बीच में मगध के महाराज अजातशत्रु, वैशाली के लिछिवी लोगों, कपिलवस्तु के शाक्यों, अल्लकल्प के वूलय लोगों, रामग्राम के कोलियों और पावा के मल्लराज ने महात्मा बुद्धदेव का परिनिर्वाण सुन अपने अपने दूतों को उनकी अस्थि के भाग के लिये कुशीनगर के मल्लराज के पास भेजा और लिखा कि "भगवान क्षत्रिय थे, हम भी क्षत्रिय हैं । इस नाते उनके शरीर के अंश पर हमारा भी खत्व है।" इसी बीच में वेठद्वीप के ब्राह्मणों ने भगवान बुद्धदेव के शरीरांश के लिये कुशी- नगर के महाराज को लिखा । कुशीनगर के मल्लराज ने जब देखा कि सभी लोग भगवान की अस्थि का अवशिष्ट भाग माँग रहे हैं, तव उन्होंने कहा, "जो कुछ हो, मगवान बुद्धदेव ने हमारे गाँव की सीमा में परिनिर्वाण प्राप्त किया है । हम उनके शरीर के भस्म का अंश किसी को न देंगे।" जव महाराज कुशीनगर की यह यात अन्य मागध और वैशा--

ली आदि के राजाओं ने सुनी तव सब लोग अपना अपना भाग.

लेने के लिये सेना लेकर कुशीनगर पर चढ़ घाए और घोर संग्राम की संभावना संघटित हुई । महात्मा द्रोणाचार्य ने जब देखा कि