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( २२१ ) मनुष्य-लोक, देवलोक और ब्रह्मलोक में बुद्ध को छोड़ दूसरा कोई ऐसा पुरुष नहीं है जो उसे पचा सकता हो । मुझे परोसने पर मेरे खाने से जो मांस वच रहे, उसे तुम गड्डा खोदकर गाड़ देना।" चुंद ने भगवान बुद्धदेव की बात सुन सूभर का मांस केवल उन्हीं को दिया और संघ के खा चुकने पर अवशिष्ट मांस आँगन में गड्ढा खोदकर गाड़ दिया। ___भगवान् बुद्धदेव का शरीर पहले से अस्वस्थ था, सूकरमांस खाने से उन्हें रक्तामाशय अर्थात् आँव और लहू के दस्त का रोग हो गया। उनके पेट में मरोड़ होने लगे और आँवलहू पड़ने लगा। उसी अवस्था में बुद्धदेव पावा से कुशीनार चले गए। मार्ग में उनका • शरीर शिथिल हो गया। महात्मा बुद्धदेव ने आनंद से कहा- "श्रानं द ! तुम यहाँ कोई कपड़ा विछा दो, मैं लेटूगा । मुझे प्यास लग रही है, तुम दौड़कर पानी लाओ।" आनंद ने उनकी बात सुनकर वहाँ वस्त्र विछा दिया और वह दौड़ा हुआ पानी के लिये गया और पानी ला कर उसने उन्हें पिलाया। इसी बीच में पाराड़- कालाम का एक शिप्य जिसका नाम पुक्कुस था, वहाँ आया और उसने भगवान् को एक सुनहला वस्त्र अर्पण किया। आनंद ने वह वस्त्र भगवान बुद्ध को ओढ़ा दिया। वहाँ भगवान् बुद्धदेव ने थोड़े काल तक विश्राम किया और जागने पर कुशीनार चले। वहाँ से है कि भूकर मदद रया वर्षा के शूफर के पवित्र मांउ को कहते हैं। इसे अनुमान होता है कि सीपर के द्विजों में गुरुदेव के पूर्व से सूफर मांस खाने की परिपाटीथी जो उनके पीछे विलुप्त हो गई।