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( २१८ ) (अनित्य ) है और (४) संसार के सब पदार्थ (रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और संस्कार ) अलीक अर्थात् क्षणिक हैं । इन चारों का स्मरण और भावना करना चतुर्विध स्मृत्युस्थान है। (२) सम्यक् प्रहाण चार प्रकार है-(१) अर्जित पुण्य का संरक्षण, (९) अलब्ध पुण्य का उपार्जन, (३) पूर्व-संचित पाप का परित्याग और (४) नूतन पापों की अनुत्पत्ति की चेप्टा करना। (३) ऋद्धिपाद अर्थात असामान्य क्षमता की प्राप्ति के लिये (१) द्धसंकल्प, (२) चिंता वा उद्योग, (३) उत्साह और (४) आत्मसंयम करना। (8) इंद्रियाँ, यह पाँच प्रकार की हैं-(१) श्रद्धा, (२) समाधि, (३) वीय, (४) स्मृति और (५) प्रज्ञा । () बल भी पाँच ही प्रकार के हैं-(१) श्रद्धावल, (२) समाधि- चल, (३) वीय बल, (४) स्मृतिबल और (५) प्रज्ञावल । (६) घोध्यंग, यह सात प्रकार का है-(१) स्मृति, (२) धर्म- परिचय वा पुण्य, (३) वीर्य, (४) प्रीति, (५) प्रश्रन्धि, (६) समाधि और (७) अपेक्षा। (७) आर्य मार्ग-यह आठ प्रकार का है-(१) सम्यक, दृष्टि, (२) सम्यक्संकल्प, (३) सभ्यन्वाचा, (४) सम्यकमात (५) सम्यगाजीव, (६) सम्यग्व्यायाम, (७) सम्यकस्मृति और (८) सम्यक् समाधि । - इन्हीं सैंतीस पदार्थों को लेकर मैंने धर्म की व्यवस्था की है। 'तुम्हें उचित है कि तुम इनका श्रवण, मनन और निदिध्यास पूर्वक