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(२) वंश-परंपरा

घहुत दिन हुए, कौशल की राजधानी अयोध्यापुरी में, जिसे साकेत भी कहते हैं, सूर्यवंश के विमल वंश में सक्ष्वाक नामक बड़ा प्रतापी राजा हुआ था जिसके वंश में महाराज राम- चंद्र जी ने अवतार लिया था। उसी इक्ष्वाकुवंश में महाराज मुस- म्मति ने जन्म लिया जिनसे कई पीढ़ी पीछे महाराज मान्धाता का जन्म हुआ। महाराज मान्धाता से सैकड़ों पीढ़ी पीछे उसी वंश में महाराज सुजात हुए । महाराज सुजात की पटरानी से अवपुर आदि पाँच पुत्र और शुद्धा आदि पाँच कन्याएँ थीं। पर महाराज ने जयंती नामक किसी साधा- रण कन्या पर आसक्त होकर बुढ़ापे में उससे विवाह कर लिया। दैववश थोड़े ही दिनों बाद जयंती के गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम जयंत रक्खा गया। कहते हैं कि एक दिन महाराज ने जयंती पर अत्यंत मुग्ध हो उससे प्रसन्न होकर. यथेच्छ पर माँगने के लिये कहा । जयंती ने

  • महायंश के अनुसार महासम्मत धीर मान्धाता के बीच पार

राधा हुए हैं, जिनके नाम रोज, पररोज, कल्याण और पीय थे, पर महायस्तु में करवाण, रय और उपोपप तीन ही फा नाम लिखा है। क्षेमेंद्र ने अपदानकरपलता में से विरुद्धक सिपा और इसे मान्धाता से सहस्त्रों पर्प पीछे लिया है। उसके मद से भान्धाता और विदक के बीच कि, कश्यप और इत्याफु गामक पड़े प्रसिद्ध राजा हुए थे।