( २१४ ) वहाँ थोड़े दिनों तक रहकर बुद्धदेव नार्दिका गए । वहाँथे गूंज- कावसथ नामक विहार में ठहरे । यहाँ भिक्षुगणों को आमंत्रित करके उन्होंने उन्हें धर्मादर्श सूत्र का उपदेश किया और लोगों को रत्नत्रय अर्थात् बुद्धधर्म और संघ की आस्था को अंतःकरण में स्थापित करने का उपदेश किया। नादिका जहाँ वे अपने संघ समेत ठहरे थे, वैशाली नगर के किनारे एक गाँव था। कहते हैं कि उस समय वैशाली में आम्र- पाली नामक एक वेश्या रहती थी। भगवान् बुद्धदेव अपने संघ समेत उसी आमपाली के आमूवन में ठहरे । अागूपाली को भग- वान् के आगमन से इतना हर्प हुआ कि उसने दूसरे दिन भगवान् की सेवा में उपस्थित होकर भगवान को ससंघ दूसरे दिन अपने यहाँ मिक्षा करने के लिये निमंत्रण दिया। भगवान् बुद्धदेव ने आमू- पाली का सच्चा भाव और उसकी श्रद्धा देख उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया । जव इस निमंत्रणस्वीकृति की चर्चा वैशाली के लिछिवी राजवंश को पहुँची तो वे लोग भगवान बुद्धदेव के पास पहुंचे और उन्होंने उन्हें अपने यहाँ भिक्षा करने के लिये निमंत्रण दिया । पर भगवान् बुद्धदेव ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि मैंने कल के लिये आम्रपाली का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है, अतः कल श्राफ लोगों की भिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता। महात्मा बुद्धदेव की ये बातें सुनकर वहाँ के लिछिवी लोग अपने मन में बहुत दुखी हुए और महात्मा बुद्धदेव का आम्रपाली के यहाँ निमंत्रण स्वीकार करना उनको भला न लगा। पर उन्हें इसका ज्ञान नहीं था कि विद्वान
पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/२२७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।