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( २०६ ) मार्ग में एक वृक्ष के नीचे यह संकल्प कर के बैठा कि उनको रास्ते में रोककर उनसे तकरार करे । भगवान् बुद्धदेव थोड़ी देर में न्यो- धाराम से चलकर उसी मार्ग से अपने संघ समेत निकलनेवाले थे। लोगों ने उनसे कहा कि सुप्रबुद्ध मार्ग में आपका मार्ग रोकने के लिये बैठा है। भगवान बुद्धदेव ने उनकी बात सुनकर कहा- सुप्र- चुद्ध हमारा मार्ग नहीं रोक सकेगा।" और हुआ भी ऐसा ही। महात्मा बुद्धदेव के आने के पहले सुप्रबुद्ध के प्राण उसी पेड़ के नीचे निकल चुके थे। ___ इस प्रकार भगवान् बुद्धदेव कपिलवस्तु से होकर कुशीनार होते हुए राजगृह चले गए। वहाँ थोड़े दिन रहकर देशाटन करते हुए चर्पा के आगमन के पहले ही वे श्रावस्ती लौट आए। . __इस प्रकार भगवान बुद्धदेव पच्चीस वर्ष तक अपना चातुर्मास्य श्रावस्ती में करते रहे । वर्षा ऋतु का अंत हो जाने पर वे अपने संघ समेत देशाटन को निकला करते थे और कौशल, मगध, कौशांबी, कुरु आदि देशों में उपदेश के लिये चले जाया करते थे। उनके लगातार चालोस पैंतालीस वा के उपदेश का यह परिणाम हुआ था कि मल्ल, लिच्छिवो,शाक्य आदि सभी राजवंश उनके अनुयायी हो गए थे । उत्तरी भारत में कोई ऐसा गाँव वा नगर न था जहाँ उनके नए धर्म के दस पाँच अनुयायी न थे। इसके अतिरिक्त भग- खान बुद्धदेव और उनके संघ के लोगों के पवित्र जीवन, सच्चे लाग और शील-संतोष का सर्वसाधारण परःइतना प्रभाव पड़ा था कि जो लोग बौद्ध नहीं थे, वे भी श्रमणों का आदर और मान करते