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(३५), अजातशत्रु . , महात्मा बुद्धदेवाजव राजगृह से अपना वीसवाँ चातुर्मास्य कर के. श्रावस्ती चले आए, तब से महाराज विंवसार को उनका पुत्र अजातशत्रु देवदत्त के उकसाने से अधिक सताने लगा|उसने महान राज के समय के सब नौकरों को महाराज से पृथक् कर दिया और अंतिम अवस्था में अपने पिता महाराज विवसार को पकड़कर, कारागृह में डाल दिया। इस कारागृह में: अजातशत्रु ने महाराजा बिंवसार को अनेक प्रकार को यातनाएँ दी और बूढ़े महाराज विंब- सार ने बड़ी धोरता:से सवाप्रकार के कष्ट सहकर कारागार में ही अपने प्राण त्यागादिए। .. कहते हैं कि जिस दिन महाराजःविंबसार ने प्राण त्यागःकिया; उसी दिनः अजातशत्रुः की राजमहिषी को दो पुत्र एक साथ ही उत्पन्न हुए। इधर कारागार से नियुक्त पुरुष महाराज. विवसार की मृत्यु का समाचार लेकर पहुंचे, उधर राजमहल से निवेदक राजकु.. मारों के जन्म का समाचार लेकर आया। ऐसी अवस्था में लोगों ने पहले पुत्रों के जन्म का समाचार देना उचित समझकर युवराज' को पुत्र-जन्म का समाचार सुनाया। पुत्र-जन्म के आनंद से युक्- राज विह्वल होगा और मंत्रियों से कहने लगा कि मेरे जन्म के समय मेरे पिता को भी ऐसा ही आहलाद हुआ होगा ।वह महाराज को कारागार से मुक्त कहने की आज्ञादेना ही चाहता था कि कारा: गार के प्रधान का पत्र जिसमें उसने महाराज की मृत्यु की. सूचना