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• यक्ष ने भगवान बुद्धदेव का उत्तर सुन हाथ जोड़कर कहा- "भगवान् , आपके इस उपदेश से मुझे ज्ञान हो गया। आपने मेरे अंतःकरण में ज्ञानरूपी दीपक जला दिया ।मैं श्राप को शरण में हूँ।" उस रात को भगवान् बुद्धदेव उसी यक्ष के स्थान पर रहे। प्रातःकाल होते ही राजा ने अपने राजकुमार और भात को हॉडी के साथ मंत्री को भेजा। यक्ष ने राजकुमार को लेकर भगवान् बुद्ध देव के आगे समर्पण किया। भगवान ने कुमार को दीर्घायु और यक्ष को सुखी होने का आशीर्वाद देकर वह कुमार मंत्री को दे दिया। मंत्री राजकुमार को लिए हुए राजा के पास गया । उसे सकुशल कुमार सहित आते देख सब लोगों को हर्प और विस्मय. हुआ। राजमहल में आनंद के वाजे वजने लगे। मंत्री के चले जाने पर भगवान बुद्धदेव यक्ष के आश्रम से उठे और अपना पात्र लेकर नगर में भिक्षा के लिये पधारे । महाराज को जब यह समाचार मिला कि भगवान् बुद्धदेवं जिनकी कृपा से राजकुमार के प्राण बचे थे, नगर में भिक्षा के लिये पधारे हैं, तब उन्होंने भगवान् को बुलाकर भोजन-वस्त्र से उनकी उचित पूजा को । भगवान् ने राजप्रासाइ में भिक्षा कर राजपरिवार को उपदेश दिया । जब वे अपने स्थान से उठे और चलने के लिये खड़े हुए, तब महाराज ने उनसे आगामी चातुर्मास्य पालवी ग्राम में व्यतीत करने के लिये प्रार्थना की, जिसे स्वीकार कर भगवान वहाँ से श्रावस्ती का वापस आए। .