यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १८३ ) · पहले तो राजा दंडित पुरुषों को भेजा करता था, पर जब कारा- गार में कोई न रह गया तब वह नवजात बालकों को भेजने लगा। देवयोग से जिस दिन भगवान बुद्धदेव उस ग्राम के पास पहुँचे,उसी दिन महाराज के यहाँ कुमार उत्पन्न हुआ था,और नियमानुसार दूसरे दिन उसी नवजात कुमार को यक्ष के पास भेजने की पारी थी। भगवान् बुद्धदेव आडविक ग्राम के पास पहुँचकर आडविक यक्ष के घर पर गए । उस समय यक्ष घर पर नहीं था। भगवान् बुद्धदेव उसके घर के द्वार पर, जिस आसन पर आडवक यन बैठता था, जाकर बैठ गए ।गड़ी देर में आडवक भी अपने घर पर आया और आते ही भगवान बुद्धदेव से वोला,-"आप निकल जाइए।" भगवान् वहां से निकलकर बाहर खड़े हो गए। उसने फिर उनसे कहा-"श्रमण,आइए" बुद्धदेव भीतर जाकर बैठ गए । इस प्रकार उसने तीन वार गौतम बुद्ध को चले जाने और फिर आकर बैठने के लिये कहा और वे उसके आज्ञानुसार जब जब उसने निकलने को, कहा निकल गए और अब आकर बैठने को कहा, तब जाकर वैठ गए। जब उसने फिर चौथी बार निकलने को कहा, तब उन्होंने कहा-"अब तो मैं न निकलूंगा । जो तेरे जी में आने सो कर।" यक्ष ने कहा "मैं आपसे प्रश्न करूँगा और यदि आप उत्तर न दे का एक प्राग्राम में रहकर यकासुर का वध करना लिखा है। अंतर यही है कि भीम ने यकासुर का वध किवा और गौतमबुद्ध ने धाडविक को उप. देश दे गांति प्रदान की। - -