यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(२९) पंद्रहवहाँ, सोलहवाँ, सत्रहवाँ और .. . अठारहवाँ चातुमास्य .. .. .. श्रावस्ती में चौदहवाँ चातुर्मास्य व्यतीत कर भगवान बुद्धदेव अपने शिष्यों समेत वहाँ थोड़े दिन ठहरकर देशाटन को निकले और भ्रमण करते हुए पद्रहवीं वर्षा के प्रारंभ में कपिलवस्तु नगर में पहुँचे और वहाँ न्यग्रोधाराम में उन्होंने अपना पंद्रहवाँ चातुर्मास्य व्यतीत किया । कपिलवस्तु से चलकर भगवान् बुद्धदेव फिर श्रावस्ती आए । वहाँ से वे एक दिन आडविक नामक ग्राम की ओर चले। यह आडविक ग्राम श्रावस्ती से तीस योजन पर हिमालय पर्वत में. था । इस गाँव से एकगन्यूति पर पीपल का एक पेड़ था जिसके नीचे आडवक यक्ष का घर था। एक दिन आडवक ग्राम का राजा मृगया । । को गया था और लौटकर थककर उसो पीपल के नीचे यक्ष के यहाँ ठहर गया था। जब वह वहाँ विश्राम कर के चलने लगा तो आड- विक यक्ष आकर आगे खड़ा हो गया और राजा के प्राण लेने पर तुल गया। बड़ी कठिनाई से राजा ने उसे प्रति दिन एक मनुष्य और एक हाँडी भात देने की प्रतिज्ञा कर अपने प्राण बचाए और अपने नगर का मार्ग लिया। उस समय से प्रति दिन उस राजा की ओर से एक मनुष्य और एक हाँडी भात नगरसे यक्ष के लिये भेजा जाने लगा। वह कथा महाभारत की उस कया से बहुत मिलती जुलती है जिसमें भीम' -