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( १७६ ) भगवान् का यह उत्तर और उपदेश सुन यक्ष का संतोष हो गया और उसने उनकी अनेक प्रकार से पूजा की। भगवान् बुद्धदेव गया से राजगृह लौट गए और ग्रीष्म ऋतु विताकर चालिय पर्वत पर बकुलवन में उन्होंने अपना तेरहवाँचातु मास्य व्यतीत किया। चातुर्मात्य के अंत होने पर वे चालिय पर्वत से राजगृह गए और वहाँ शरद ऋतु व्यतीत करने लगे।