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( १७८ ) रति और लोमहर्प कहाँ से पैदा होते हैं ? मन में वितर्फ कहाँ से होता है ? जिससे यह मन एक कनकौए के समान है जिसे कुमार वा बालक इधर उधर उड़ाया करते हैं।" · गौतम ने कहा-"यहो आत्मा राग और दोष का निदान है। इसी से रति, अरति और लोमहर्प उत्पन्न होते हैं । इसी से मन में वितर्क उत्पन्न होता है । यह उस कनकौए के समान है जिसे अबोध कुमार इधर उधर उड़ाया करते हैं। ये राग आदि, स्नेह से आत्मा में न्यग्रोध के स्कंध के समान उत्पन्न होते हैं और कामों में वार वार. मालू नामक लता के समान ओतप्रोत लपटते हैं । हे यक्ष ! जो इनका निदान जानते हैं, वे आनंद प्राप्त करते हैं; और इस ओघ को जो अत्यंत दुस्तर है, पार कर के निर्वाण प्राप्त करते हैं और उनका पुनर्भव नहीं होता।"

  • रोगो र दोसो घ इतो निदाना

भरतीरती लोमहवो इतोषा। इतो समुहार्य मनो पितको कुमारका कमिपोस्सर्जति । सेनहबा उत्तसंभूता नियोपस्सेष खंधना, .पुष्ट विसति कामेसु पालुवा पिततापने। येनं पवाति यतो निदान । तेनं विनोदेन्ति सुणेहि वक्वं। ते दुसरं प्रोपभिभ दरंति। अवस्स पुफ्फ अपुनम्भवाव।