यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(२६) बारहवाँ चातुर्मास्य ... राजगृह में थोड़े दिन निवास कर भगवान बुद्धदेव अपने संघ को साथ ले देशाटन को निकले और फिरते फिरते वेरंजर ग्राम में पहुँचकर एक वृक्ष के नीचे बैठे। वहाँ के ब्राह्मण ने उनकी यथा- वत् पूजा की और उनके उपदेश सुनकर उन्हें आगामी वर्षों में वहाँ चातुर्मास्य करने के लिये आमंत्रित किया । उनका निमंत्रण स्वीकार कर भगवान बुद्धदेव वहाँ से आगे चले गए। ___ वर्षा ऋतु के आगमन पर वे अपने संघ समेत फिर वेरंजर ग्राम में आए। पर वहाँ उस वर्ष अनावृष्टि के कारण घोर अकाल पड़ा और दुर्भिक्ष के कारण वहाँ के ब्राह्मण लोग भगवान बुद्धदेव और उनके संघ का कुछ विशेष सेवा-सत्कार न कर सके। संघ को दुर्भिक्ष पड़ने से मिक्षा में बड़ी कठिनता पड़ने लगी । दैवयोग से उस चातुर्मास्य में उत्तरापथ से घोड़े के व्यापारी घोड़े लेकर आए और उन लोगों ने घोड़ों के दाने में से कुछ काट कपटकर भिक्षु ओं को देना आरम्भ किया जिसे लेकर संघ के लोगों ने अपना निर्वाह किया। आनंद के अतिरिक्त संघ के सब लोग घोड़ों का दाना लेकर उसे कूट काटकर खाते रहे ! पर आनंद ने दाना लेकर उसे साफ सुथरा कर पीसकर स्वयं खाया और भगवान बुद्धदेव को खिलाया। कहते हैं कि कितने ही संघ के भिक्षु ओं ने इस अनावृष्टि और दुर्भिक्ष के समय बासी रखना और दूसरे दिन बासी अन्न खाना प्रारंभ किया। भगवान बुद्धदेव को उन लोगों का