यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१७४ ) फाल से जोतता हूँ । कायगुप्ति, बचोगुप्ति और आहार में संयम और सत्य हो दाना और सौवर्च प्रमोचन, प्रोसाना है । वीर्य मेरे वैल हैं, योगक्षेम अधिवाहन है और मैं इस हल का निट अवि- प्रांत चलाया करता हूँ जिससे मुझे किसी प्रकार का सोच नहीं होता । हे भारद्वाज ! मैं यही कृषि करता हूँ। इस कृषि से अमृत फल मिलता है और कृपक सब दुःखां से छूट जाता है।" 'भारद्वाज गौतम की यह बात सुन उनके चरणों पर गिर पड़ा और प्रव्रज्या ग्रहण कर भिक्षुः हो गया । ___ नाडक ग्राम में गौतम ने अपना ग्यारहवाँ चातुर्मास्य विताया और चातुर्मास्य के समाप्त होने पर वे राजगृह चले गए।

  • सधा यो तपो दुद्वि पन्ना में युगनंगलं ।

हिरिईसा पनी योर सति में फासपाचनं । फायगुत्ति यवोगुत्ति साहारे उदरे यतो। सफरोमि निदान, सोरत में पमोधनं । पिरियं मे धुरिधोरर, योगक्षेमाधिवाहर्ण, गच्छति प्रनिपत यत्यं गत्या न सोचति । स्पमेसा कसी कट्ठा का होति धमवाफला, रतं कसी फसित्यान सम्पदुक्खा पमुञ्चति ।