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( १७२ ) गृह चला गया था और वहाँ महाराज वियसार के राजकुमार अजा- तशत्रु को अपने वश में लाने के लिये प्रयत्न करने लगा। देवदत्त उस समय से राजगृह में रहने लगा और भगवान बुद्धदेव से विरोध करने के लिये गुप्त रीति से उद्योग करने लगा। ___ वर्षा ऋतु के अंत में सारिपुत्र और मौद्गलायन उन्हें हूँढ़ते हुए पललेय वन के पास पहुँचे। वहाँ उन्हें आनंद मिला और उससे उन्हें यह मालम हुआ कि भगवान इस जंगल में अकेले एकांतवास कर रहे हैं। आनंद को साथ ले सारिपुत्र और मौद्गलायन भगवान् बुद्धदेव के पास गए और उनसे संघ की दुरवस्था निवेदन कर श्रावस्ती चलने के लिये प्रार्थना की । बहुत कइने सुनने पर भगवान् बुद्धदेव ने श्रावस्ती जाना स्वीकार किया और एक दिन जगल में रहकर वे उनके साथ श्रावस्ती चलने को रवाना हुए। भगवान बुद्धदेव का श्रावस्ती अाना सुन भंडनकारी भिक्षसंघ के लोग, जिन्हें परस्पर वाद विवाद और विरोध करने के कारण भगवान बुद्धदेव ने परित्याग कर दिया था, श्रावस्ती की ओर चले। जब महाराज प्रसेनजित् को यह समाचार मिला कि फिर भंडनकारी. भितु श्रावस्ती में आ रहे हैं और यहाँ आकर फिर परस्पर वैर विरोध कर के भगवान् को कष्ट देंगे, तब उन्होंने उन्हें आने से रोकना चाहा, पर भगवान् बुद्धदेव ने महाराज प्रसेनजित् को रोका किं यदि भिक्षगण आना चाहते हैं तो उन्हें आने दो । जव संघ के लोग वहाँ आए तो उन लोगों ने भगवान बुद्धदेव से क्षमा-प्रार्थना की और भगवान् ने उन्हें क्षमा कर दिया। . . .