( १६८ ) से कहा-"महाराज ! श्यामावती कुक्कुट का मांस बहुत अच्छा पकाती है।" महाराज ने उसकी बात सुन कुक्कुटों को श्यामावती के यहाँ भेज दिया और कहला दिया-"आज मैं वहाँ भोजन करूँगा। यह कुक्कुट श्यामावती मेरे लिये पकावे ।" श्यामावती ने उस दिन अनेक प्रकार के व्यंजन महाराज के लिये बनाए और जय महाराज उदयन उसके घर में भोजन के लिये गए तो उसने सब कुछ परोसकर उनके आगेधरा । महाराज ने कुक्कुट का मांस न देख श्यामावती से पूछा कि कुक्कुट का मांस कहाँ है ? उसने हाथ जोड़कर कहा-"महाराज आपके सब कुक्कुटों को मैंने छोड़ दिया। मैं जीवहिंसा न करूँगी ।जैसा मुझे दुःख होता है, वैसे अन्य प्राणियों को भी होता है। फिर इस अधम पेट के लिये कौन बुद्धिमान् पुरुप प्राणिहिंसा करना उचित समझेगा ?" राजा को श्यामावती की वात बहुत अच्छी लगी और जो कुछ व्यंजन उनके सामने रखा था, उसीको खाकर वे अत्यंत संतुष्ट हुए। अब तो मागंधी और जली । उसके दो दो प्रयत्न निष्फल गए। अव वह यह सोचने लगी कि किस प्रकार वह श्यामावती को राजा का कोपभाजन वनाए । अत को उसने यह निश्चय किया कि अव श्यामावती पर महाराज के प्राण लेने का दोष. लगाना चाहिए।' यह दोप प्रमाणिन होने पर महाराज उसके प्राण लिए विना न छोड़ेंगे। यह विचारकर उसने एक नाग का बच्चा मँगवाया और जिस दिन राजा श्यामावती के यहाँ जानेवाले थे.. उस दिन उनकी हस्तिस्क बीणाध में उस नाग के बच्चे को भरकर श्यामावती के
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