( १६४ ) और मागंधी । उनमें मागंधी कनिष्ठा थी । वासवदत्ता पांचालराज की कन्या थी और श्यामावती एक वैश्य की पुत्री थी। उन तीनों में महाराज का श्यामावती पर अधिक प्रेम था। श्यामावती की एक दासो खुज्जुहारा नाम की थी । एक दिन भगवान् एक माली के घर, जिसके यहाँ से राजप्रासाद में फूल जाया करते थे, भिक्षा के लिये गए । माली ने भगवान को ससंघ बड़े प्रेम से भिक्षा दी और उनके सदुपदेशों को श्रवण किया । दैवयोग से भगवन् के उपदेश के समय श्यामावती की दासी खुज्जुहारा भी वहाँ उपस्थित थी। भग- चान् के उपदेश का प्रभाव उस दासो पर भी पड़ा । उस दिन वह फूल लेकर देर से राजमहल में गई । श्यामावती ने उससे देर से आने का कारण पूछा तो उसने साफ साफ कह दिया-"मैं जव माली के घर फूल लेने गई, तब भगवान् बुद्धदेव वहाँ भिक्षा के लिये पधारे थे । मैं उनका उपदेश सुनने लगी, इसी कारण मुझे आज देर हो गई। जब रानी ने फूल देखे तो नित्य से उसे द्विगुण फूल दिखाई पड़े। महारानी ने हँसी से पूछा- आज, तू क्यों अधिक फूल लाई है ?" खुजुहारा ने हाथ जोड़कर कहा-"महा- रानो को जय हो, नित्य मैं मूल्यं का आधा स्वयं ले लेती थी, पर. आज मैं कुल मूल्य का फूल लाई हूँ । मैंने आज से भगवान बुद्धदेव का उपदेश सुन यह प्रतिज्ञा की है कि अब चोरी, असत्य भाषण, हिंसा आदि न करूँगी । उन्हीं के उपदेश-रत्नों का यह फल है।" श्यामावती को यह सुन भगवान् बुद्धदेव पर श्रद्धा उत्पन्न हुई। उसने अपने मन में कहा-"जिस महापुरुष के उपदेश से लोगों
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