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( १५५ ) माली उनसे मिला और उसने एक पक्का आम उन्हें भेंट किया। इस आम काँ भगवान् ने वहीं लेकर खा लिया और वीज वहीं फेंक दिया। कहते हैं कि वह आम का वीज उसी समय उग गया और देखते देखते बढ़कर वृक्ष होकर फल गया। भगवान् वहाँ से उठकर जेतवन विहार में आए ! इसके बाद ही आँधी आई और पानी वरसा । आँधी पानी के निवृत्त होने पर महात्मा बुद्धदेव ने आम्रवन में सब लोगों को युग्म-प्रतिहार नामक योग-लीला दिखा कर अपना विराट स्वरूप दिखाया और एक पैर युगंधर पर्वत पर रखकर और दूसरा पैर त्रयस्त्रिंश नामक स्वर्ग में रखकर वे वहा से अंतर्धान हो गए । कहते हैं कि उस वर्ष भगवान् ने श्रयस्त्रिंश नामक देवलोक में अपना चातुर्मास्य किया और अपनी माता मायादेवी को, जिसने इस संसार को छोड़ने पर वहाँ जन्म-ग्रहण किया था, अमिधर्म का उपदेश किया।