(३)
धीमी पड़ गई थी। ऋषियों का वह स्वातंत्र्य और पक्षपात- राहित्य जिसने सारस्वत प्रदेश के रहनेवाले ऋपियों को " कवष ऐल्प ' नामक एक दासीपुत्र को वैदिक भाषा में कविता करने पर उसने घमण से प्रतिज्ञा की थी कि यदि मेरे कोई पुत्र होगा तो मैं उससे यज्ञ करूंगा। दैवयोग से उसके एक पुत्र हुआ और उसका नाम रोहित पड़ा। रोहित के जन्म लेते ही यगण ने बार बार यज्ञ करने के लिए तगादा करना प्रारंभ किया, पर हरिश्चंद्र उसे टालते गए । अंत को लब रोहित पढ़ा हुधा तो वह भागकर जंगल में चला गया। वरुणा के यार पार दौड़ दौड़ फर तगादा करने से तंग आकर राजा हरिश्चंद्र ने एक लड़के को मोल लेकर उससे यज्ञ करने का निश्चय फिया । जीर्गत माम के ऋषि के तीन पुन थे, शुनापुच्छ, शुनाशेप और शुनःलांगूल । हरिश्चंद्र जी ने उनसे शुनःशेप को मोल लिया। यही शुनःशेप बलिदान के लिये यज्ञयूप में बांधे गए। उस समय अपने बचने के सिर को जो. प्रार्थनाएं शुनाशेप ने की थी ये मंत्र रूप में आप तक ऋग्वेद से पहले मंडल में मिलती हैं। अंत को विश्वामित्र जी ने यज्ञयूप से इन्हें बचाकर अपना वृत्रिम पुत्र बनाया। यही इतिहास कुछ उलट-फेर फे साप चंद्रकुमार जावफ में मिलता है । ___* कौपीतक ब्राह्मण अ० १३ में लिखा है कि एक वार ऋषि लोग सरस्वती के किनारे किसी सत्र में भोजन कर रहे थे। कवष सेलूप उनकी पंक्ति में भोजन करने के लिये ना बैठा। ऋषियों ने उसे देख कर कहा कि "कयप तू दासीपुत्र है, इन वेरे साथ न खायंगे।" कपप यहां से चला गया और घोडेही दिनों में उसने कितने मंत्री की रचना कर डाली । ऋपियों को जय फवप की योग्यता का पता चला तो उन लोगों ने उनके पार जा अपने अपराध की क्षमा-प्रार्थना की और उते महर्षि कहकर अपनी पंक्ति में ले लिया। फयप के रचे मंत्र अब तफ अग्वेद में हैं।. .:.