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'नंद कुमार बड़े उत्साह से: बोल उठा-" मैं क्षत्रिय कुमार होकर कैसे कहूँ कि मैं ब्रह्मचर्य नहीं पालन कर सकता। मैं अवश्य कर सकता हूँ।" भगवान् ने उसी दम उसका सिर मुंड़ा उसे चीवर पहना भिक्षा पात्र दे भिक्षु बना संघ में सम्मिलित होने को आज्ञादी। - बहुत देर तक जब नंद कुमार न लौटा तब महाराज सुद्धोदन ने अपने आदमियों को न्यग्रोधाराम में नंद कुमार को बुलाने के लिये भेजा। जब वे लोग न्यग्रोधाराम में पहुंचे, तब उन्होंने नंद कुमार को वहाँ भगवा वस्त्र धारण किए भिक्षुसंघ में बैठे हुए देखा । वे . लोग वहाँ से लौटकर कंपिलवस्तु गएँ और महाराज शुद्धोदन से उन्होंने सारा समाचार निवेदन किया । महाराज शुद्धोदन नंदकुमार के भिक्षु होने का हाल सुन शोक सागर में डूब गए। पर मंत्रियों के समझाने से उन्होंने धैय्य धारण किया और कुमार राहुल को देख अपने मन में संतोष किया। . . .. ' इस घटना को हुए बहुत दिन नहीं बीते थे कि एक दिन भगवान् 'बुद्धदेव अपने भिक्षुसंघ के साथ राजमहल में भोजन करने के लिये पधारे। जब वे भोजन कर के अपने संघ समेत उठकर न्यग्रोधाराम चलने लगे, उस समय राहुल की माता यशोधरा ने अपने पुत्र राहुल से कहा- हे पुत्र, वह संन्यासी जो भिक्षापात्र लिए भिक्षुसंघ के आगे आगे जा रहे हैं, तुम्हारे पिता हैं । 'तुम उनके पास जाकर अपने पैतृक दाय की याचना करो।" सात आठ वर्ष का कुमार राहुल 'राजमहल से दौड़ता हुआ भगवान बुद्ध के पास पहुंचा और उनकी छाया को बचाता हुआ उनके पीछे साथ-साथ न्यग्रोधाराम में पहुंचा।