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। १३८ ) --" मैं वहाँ न जाऊँगी । यदि भगवान् को मेरा स्नेहं होगा, तो वे स्वयं यहाँ मुझे उपदेश करने और दर्शन देने के लिये पधारेंगे।" उपदेश समाप्त होने पर भगवान बुद्धदेव महाराज शुद्धोदन की अनुमति ले अपने शिष्य सारिपुत्र और मौद्गलायन को साथ ले यशोधरा की कक्षा की ओर पधारे। चलते समय उन्होंने अपने दोनों शिष्यों सारिपुत्र और मौद्गलायन से कह दिया कि-"यदि यशोधरा विलाप करते समय विहवल होकर मुझे स्पर्श कर ले तो तुम लोग उसे रोकना नहीं।" भगवान् अपने दोनों शिष्यों समेत यंशोधरा की कत्ता में पधारे। यशोधरा अपने गृह में भूमि पर बैठी थी । उसने भगवान् को भगवा वेष धारण किए देखकर विलाप करना प्रारंभ किया। वह विह्वल हो उनके पैरों पर गिर पड़ी और फूट फूट कर रोने लगी । भगवान् बुद्धदेव ने उसे अनेक प्रकार के उपदेश दे. कर उसको सांत्वना की । यशोधरा को शांति दे भगवान् अपने भिक्षु- संघ के साथ न्यग्रोधाराम को लौट आए। .. अब तक तो महाराज शुद्धोदन को आशा थी कि सिद्धार्थ कुमार आकर राजपद स्वीकार करेगा और वह इस वृद्ध अवस्था में उनसे राज्य का भार लेकर उनका वोम हलका करेगा; पर उन्होंने जव सिद्धार्थ कुमार की यह अवस्था देखी तो उन्हें नितांत नैराश्य हो गया । अब उन्होंने मंत्रियों से मंत्रणा कर अपने दूसरे राजकुमार नंद को, जो प्रजावती का पुत्र था और जिसका जन्म भी उसी दिन हुआ था जिसं दिन भगवान बुद्धदेव ने जन्म लिया था, युवराज पद पर अभिपिक्त करने का विचार किया और अच्छे अच्छे ज्योति-