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( १३१ ) माया करते थे। उन्हें देखकर अत्यंत भय होता था और वे पर- पर कहा करती थीं- आगतो खो महासमणो मगधार्न गिरिजजं । - सब्वे संचेय नीत्वान के सुदानि नयिस्सति ।। अर्थात् मागधों के गिरिब्रज नामक प्रदेश में अब तो महाश्रमण नाए हैं, सब लोगों को एक एक करके उन्होंने संन्यास ग्रहण कराया और उन्हें वे अपने साथ ले गए। आज वे फिर आए हैं। देखें, अव किसे ले जाते हैं। .. . जव स्त्रियाँ चारों ओर भिक्षुओं को जब वे भिक्षा लेने के लिये जाते थे, देख इस प्रकार बातें करने लगी तो भिक्षुओं ने भगवान् बुद्धदेव से निवेदन किया कि नगर और ग्राम की स्त्रियाँ हम लोगों को देखकर परस्पर तरह तरह की बातें करती हैं और कहती हैं कि ये लोग सब को तो मूड़कर अपने साथ ले गए; अव न जाने किसे लेने के लिये आए हैं। भगवान ने उस समयं उन भिक्षुओं से कहा- हे भिक्षुओ, जिस समय स्त्रियाँ तुम्हें देख कर ताना मारें, उस समय तुम लोग भी उनसे यह कह दो कि तथागत और उसके भिक्षु लोगों को महावीरों की तरह धर्मपूर्वक पकड़कर ले जाते हैं। जब वे उन्हें धर्म से ले जाते हैं, तब इसमें ईर्ष्या करने की कौन सी बात है । वह गाथा यह है- नयंति हि महावीरा सद्धम्मेन तथागतां । सम्मेन नीयमानानका उसूया विजानतं ति॥