( १२३ ) विल्वकाश्यप के संन्यास ग्रहण करने.और अग्निहोत्र के परि- त्याग करने का समाचार पा नदीकाश्यप और गयकाश्यप भी अपने शिष्यों सहित महात्मा बुद्धदेव की शरण में आए और उनसे ब्रह्मचर्य की दीक्षा ले उन्होंने संन्यास ग्रहण किया। .. उरुवेला से गौतम काश्यपत्रय और उनके एक सहस्र अंते- वासियों को, साथ लिए गयशीर्प पर्वत पर गए.और वहाँ थोड़े दिनों तक रहे। एक दिन गौतम बुद्ध ने भिक्षुओं के संघ में सव को आदेश कर के कहा- ____ "हे भिक्षु ओ ! सव जल रहे हैं। यह विचारना चाहिए कि कौन जल रहे हैं ? चक्षु इंद्रिय जल रही है। रूप जल रहा है। चक्षु इंद्रिय से जो विज्ञान उत्पन्न होता है, वह भी जल रहा है। आँख के विषय जल रहे हैं। यह आँख और जो इस आँख के विषय हैं
- सब मियखवे धादि। किंप मिक्खवे सव्यं धादिर?। पर्नु
धादि, रूपो शादितो, यमिदं चक्षुर्य चस्सा विभाणं प्रादित, धतु- से फरसा धादित्तो। वमिदं चक्टु वचस्या पचया उत्पन्जति वेदयितं सुखधा दुल वा अदुक्खमसुखं यातपिशादि। केन प्रादिचं? रागग्गिना दोसग्गि- मामोहग्गिना धादिचं । जातिया प्रराय भरणेन सोकेभि परिदेवेभि दुस्खेमि दोमनस्सैभि उपायासेभि शादि। सो धादि। सदा अादिचा । घाख प्रादि। गंधा धादिचा । किंवा पादत्तिा । रसा धादिचा। कावो आदिंचो फोटव्या 'शादिक्षा । मनो आदिची। वमिदमनोसफरसंपंच्या उपबंधि वेदवितं सुखं वा दुखं धा अदुक्खममुखंधी तपि धादि। केन आदिवं? रागग्गिना दोसग्गिना मोहग्गिनां धादि। जातिवा जराव मरणेन मोकेमि परिवेदेमि दुक्खेभि दोमनसेमि उपायाभि धादिन ति वदामि । एवं वस्स- मिक्खये सुवषा अरियसावको धक्नुस्मि पि निविंदति । कंसुपि