( १२१ ) महा.विद्वान् ब्राह्मण रहते थे। उन विद्वानों का नाम विल्वकाश्यप, नदीकाश्यप और गयकाश्यप था। ये तीनों सगे भाई और वेदपारंगत तथा दार्शनिक विद्वान् थे। विल्वकाश्यप उरुविल्ववन में अपने पाँच सौ शिष्यों को वेदाध्ययन कराता और अग्नि को धारण कर के रहता था; और नदीकाश्यप निरंजरा नदी के तट पर अपने तीन सौ विद्या- र्थियों को अध्ययन कराता तथा अग्निहोत्र करता रहता था। उसका तीसरा भाई गयकाश्यप गया में रहता था। उसके पास दो सौ विद्यार्थी विद्याध्ययन करते थे। ये तीनों ब्राह्मण बड़े विद्वान, अग्नि- होत्री और कर्मनिष्ठ थे। गौतम बुद्ध कापास्य वन से चलकर उरुविल्व वन में विल्व- काश्यप के श्राश्नम पर पहुंचे। विश्वकाश्यप अपने आश्रम में बैठा अपने शिष्यों को अध्ययन कराता था। उसके अग्निकुंड काआकाश- व्यापी धूआँ चारों ओर छा रहा था। गौतम ने, विल्वकाश्यप से कहा-" यदि आपको कोई कष्ट न हो तो मैं आपके आश्रम में निवास करूँ। " विल्वकाश्यप ने उन्हें अपने आश्रम में रहने की आज्ञा दी । भगवान् बुद्धदेव उसके आश्रम के पास एक वृक्ष के - -
- महावण का भय है कि विस्वकारयप ने गौतम युद्ध के शाश्रय
मांगने पर कहा था कि वहां अग्न्वागार के सिवा दूसरा स्थान नहीं है और उसमें एक परम वियपर सांप रहता है। गौतम रात को वहीं रहे और अपनी दिव्यशक्ति से उस नाग को पकडंफर उन्होंने कमंडल में बंद कर दिया । पिस्वकारयप..उनकी इस ऋद्वि तथा अन्य अनेकों ऋतियों को देख उनका परम भक्त हो गया और अंव को उनसे 'परिवान्य' ग्रहण किया।