( १२० ) देव ने उनसे पूछा कि कुमार ! तुम क्यों उस स्त्री को ढूंढ रहे हो ? " भद्रवर्गीय कुमारों ने महात्मा बुद्ध से सारा समाचार कह सुनाया। भगवान् उनसे सब हाल सुनकर बोले-"कुमारो! भला तुम मुझे यह तो बताओ कि तुम स्त्री को तो ढूंढ रहे हो, पर क्या तुम लोगों ने कभी अपनी आत्मा को भी ढूंढने प्रयत्न किया है ? यह तो मुझे बताओ कि तुम लोग स्त्री-जिज्ञासा को अच्छा समझते हो वा आत्म-जिज्ञासा को ? "भद्रीय कुमारों ने थोड़ी देर तक विचार करके कहा-" महाराज ! हम लोग आत्मा की जिज्ञासा को श्रेष्ठ समझते हैं। " गौतम ने कहा- अच्छा कुमार ! यदि तुम लोग आत्मा की जिज्ञासा . करना चाहते हो तो आओ, मैं तुम्हें बताऊँगा।" गौतम की बात सुन कर राजकुमार लोग अभिवादन कर उनके पास बैठ गए और गौतम बुद्ध उन्हें उपदेश देने लगे! गौतम ने उनसे दाम और शील की महिमा वर्णन कर स्वर्ग की कथा कही। फिर उन्होंने कामों की अनित्यता का वर्णन किया और सुकृति की प्रशंसा की। फिर निष्कर्म का वर्णन करते हुए दुःख, समुदय, निरोध और मार्ग का उपदेश किया । गौतम का उपदेश सुन भद्रीय कुमारों की आँखें खुल गई और उन्हें वैराग्य हो गया। .गौतम ने उन्हें परिव्राजक बना ब्रह्मचर्य का उपदेश दे धर्मोपदेश करने के लिये चारों दिशाओं में भेज स्वयं उरुवेला की राह ली। . . . . उरुविल्व-वन में निरंजरा ॐ नदी के किनारे 'काश्यपगोत्री तीन ___-* इसे निरंजना भी कहते हैं। -
पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१३३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।