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(११८ ) साथ न जाइए । शिष्यवर्गो ! संसार में धर्म के उपदेश की बड़ी आवश्यकता है.। सब लोग सांसारिक सुखों में, जो वास्तव में घोर दुःख हैं, निमग्न हैं। उन्हें वास्तविक सुख की जिज्ञासा नहीं है, अतः आप लोग जाइए और चारों और धर्म का डंका बजाकर सोते.हुए: जीवों को जगाइए'- . . . : । प्रपूरय धर्मशंखं प्रताड़य धर्मदुदभि । प्रसारय धर्मध्वजां धर्म कुरु धम कुरु धर्म कुरु ॥ .