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( ११० ) दृष्टिं, सम्यक्संकल्प, संम्यवांचा, सम्यगाजीव, सम्यग्व्यायाम, सम्यकस्मृति और सम्यक्समाधि । हे मितुओ ! यही मध्यमा प्रतिपदा है जिसे तथागत ने साक्षात् किया है। यह चक्षुकरणी और ज्ञानकरणी है और यही मनुष्य को उपशम, अभिज्ञा, संवोध 'और निर्वाण तक पहुँचानेवाली है। ___ हे भिक्षुओ ! पहला आर्य-सत्य दुःख है । जाति अर्थात् जन्म भी दुःख है, जरा भी दुःख है, व्याधि दुःख है, मरण वा मृत्यु 'दुःख है, अप्रिय का मिलना दुःख है, प्रिय का बिछुड़ना दुःख है, · · शदं दुखनिरोधगानिनी पटिपदा वरियसच्चति मे मिक्खवे पुण्येसु अननुस्सुवेधम्मे, चसु उदपादि, जाणं उदपादि, पञ्जा उदपादि, विमा उदपादि, भालोको उपादि । तं से पनिदं दुक्खनिरोधगामिनी पटिपदा अरियस मायेतब्बति ने भिक्सवे पुन्बेतु अननुस्खुवेसु धम्नेसु, चक्तुं उदपादि, मायां उदपादि, पञ्ना उदपादि, विधा उदपादि, अलोको उदपादि । सो पनि दुक्यनिरोपगामिनी पदिपदा अरिवसच्चं भावितति मे भिक्सवे पुब्वेनुः धनुस्तेज धम्नेसु, पक्खु उपदादि, आणं उदपादि पञ्जा उपदादि, विज्या उपदादि, मालोको उपदादि। याय फिपंच मे मिक्खये इमेसु चतुस्सु धरिपश्येमु एवं तिपरिवचित द्वादसाकारं पयाभूतं नाणदस्सनं न जुपिसुई पहेसि नेव तायाहं निपखवे भदेवफेलाले समारफे सरमणब्राझणीया पनवा सदेवमनुस्साय अनुत्तरं रुम्मा- संवाधि अभियुद्धोति पचत्राणि । यतो पखो मे मिलवे इसेहु चतुस्नु परिवसच्चेसु एवं तिपरिवत्सितं वाहादसाकारं ययाभूतं मालदस्सनं मुविमुद्ध हासि । प्रयाई मिक्सपे सदेवके समारफे उसमणब्राह्मणीया पजका रुदेव- मनुस्साया भनुचर सम्मायोधि भनिसंयुद्धोवि पध्वनासि । भार पन मे दस्तन उदपादि प्रकोपा मे निष्पवे चिनो यिमुत्ति । अयं में संविना भावि नरिल ने पुनभयोति । ।