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र १०७ ) "भिक्षुगण ! मैंने बोधि-ज्ञान प्राप्त कर लिया और मैं अब तुम लोगों को उसका उपदेश करने के लिये यहाँ आया हूँ।". . गौतम की बात सुन वे लोग उनकी हँसी उड़ाने लगे और उनसे उपेक्षा करने लगे। पर गौतम ने उनसे कई वार कहा कि-"भिक्षु- गण ! तुम लोग विश्वास करो, मैंने बोधिज्ञान प्राप्त किया है और मैं तुम्हें उपदेश करने के ही लिये यहाँ आया हूँ। मैंने संसार के निदान को जान लिया और अब मैं जीवनमुक्त. तथा विगत-शोक हूँ।" उनकी इस प्रकार की दृढ़तापूर्ण वाणी सुन कौडिन्य, जो - उन सब में वयोवृद्ध था, उनके उपदेश सुनने को उत्कंठित हुआ। उसने अपने साथियों से कहा-"भिक्षुगण ! विना सुने तुम लोग यह कैसे कह सकते हो कि गौतम को ज्ञान लाभ नहीं हुआ ? जब यह इस दृढ़ता से कहता है तो हमारा कर्तव्य है कि हम उसका उपदेश सुनें और यदि ग्रहण करने योग्य हो तो उसे ग्रहण करें।" युक्तियुक्तमुपोदयं वचनं वालकादपि .. अन्यत्तृणमिव त्याज्यमप्युक्तं पद्मजन्मना । तव सायंकाल हुआ तो सब लोग आश्रम में बैठकर गौतम का उपदेश सुनने लगे। गौतम ने कहा- " हे भिक्षुओ संन्यासी वा परिव्राजक को दो अंतों का सेवन न करना चाहिए । वे दोनों अंत कौन हैं ? पहला काम-विषय-

  • एवं मे मुत-एक समयं भगया धारासियं विहरवि इसिपवने मिगदायें

चन्न खो भगवा पंचयग्गीये मिप्नवु धामवेसि---