( १०२ ) कि उनको यह समाचार मिला कि आचार्य रुद्रक का परलोकवार्स हो गया और अब वे इस संसार में नहीं हैं। यह जानकर महात्मा बुद्धदेव को बड़ा शोक हुआ। वे अपने मन में कहने लगे-"हा! प्राचार्य रुद्रक ! शोक है कि आप इस संसार में नहीं हैं । नहीं तो आज आप हमारे इस नवीन साक्षात्कृत ज्ञान को सुन कितने प्रसन्न होते " थोड़ी देर प्राचार्य रुद्रक के शोक से संतप्त हो कर वे अपने मन में यह विचार करने लगे कि यदि उत्तम अधिकारी नहीं हैं, तो चलो किसी मध्यम अधिकारी को ही यह ज्ञान दें जिससे यह ज्ञान मेरे बाद संसार में लोगों के कल्याण करने के लिये रह तो जाय। बड़े सोच विचार के बाद उन्होंने आराड कालाम को मध्यम अधिकारी जान उसके पास चलकर उसे अपने धर्म का संदेश सुनाने के लिये राजगृह की ओर जाने का विचार किया। वे उठकर राजगृह का मार्ग लिया ही चाहते थे कि उन्हें यह समाचार मिला कि अराड कालाम भी इस संसार में नहीं हैं। अब तो गौतम को चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा दिखाई देने लगा। उन्हें नैराश्य हो गया और वे घड़ी चिंता में निमग्न हुए। वे सोचने लगे कि-"क्या मैं अकेला इस बोधिज्ञान का सुख भोगूं ? ऐसा करने से मुझ में और इतर जनों में क्या भेद रह जायगा ? क्या अकेले किसी सुख को ऐसी अवस्था में भोगना जब कि मेरे अन्य भाई दुःख-सागर में निमग्न हैं, स्वार्थ नहीं है ? भावी संतान को जब यह मालूम होगा कि सिद्धार्थ ने अश्रुतपूर्व विज्ञान लाम किया और उसने किसी दूसरे को वह ज्ञान नहीं दिया, तो वे मुझे क्या कहेगें ? अब क्या करूँ, अधिकारी कहाँ से लाऊँ ?
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